सिनेमा का उद्देश्य ‘मुनाफा’ नही बल्कि,समाजिक बदलाव होना चाहिए। बजट में भले ही कम हों फिल्मों का,मगर विषयवस्तु की मज़बूती सारे बड़े बजट की फिल्मों को टक्कर दे देती है। इन दिनों ‘ब्रह्मास्त्र’ की चर्चा,सिर्फ उसकी कमाई को लेकर है। सिर्फ VFX की बात हो रही। फिल्म की कहानी का उद्देश्य क्या है,यह तर्क से परे है। सामाजिक मुद्दों पर लिखने वाले दिलीप सी मण्डल कहते हैं कि इस फ़िल्म में तर्क न ढूँढिये,क्योंकि यह फ़िल्म तर्क से परे है।
ब्रह्मास्त्र कमाई के मामले में भले ही आगे चल रही हो,मगर पढ़े-लिखे व सिनेमाई समझ रखने वाले लोगों की अच्छी प्रतिक्रिया नही मिल रही। फिल्म को सिर्फ मनोरंजन के लिए देखा जा सकता है ऐसा ज्यादातर दर्शक व फ़िल्म समीक्षकों का कहना है।
कुछ दर्शकों का कहना है कि इसमें नरेशन के अलावा कोई कंटेंट नही है। फ़िल्म एक कहानी मांगती है,जिससे दर्शकों को बात करने का कोई मुद्दा तो मिले,लेकिन ये तो सिर्फ आग,हवा,पानी के VFX इफ़ेक्ट के अलावा कुछ नही।
कहानी व पटकथा में कोई विशेष ध्यान नही दिया गया है। मगर अयान मुखर्जी का कहना है कि ये फ़िल्म बनाने में 10 साल लग गये। दर्शकों का कहना है कि अयान को दस साल इसलिए लगे होंगे कि बजट कहा से लाऊं?, बड़े सितारों को कैसे साइन करूं,न कि रिसर्च में उनको इतना समय लगा। अगर रिसर्च में ठीक से दो साल दिया होता तो फ़िल्म की कहानी लोगों की जुबान पर होती लेकिन जबान पर VFX व आग ,हवा ,पानी के अलावा कुछ नही।